बुधवार, 4 अगस्त 2010

3.हुसैन ने जनता से माफ़ी माँगी


बी.बी. सी. से साभार -
एमएफ़ हुसैन
हुसैन पहले भी विवादों में रहे हैं
चर्चित चित्रकार एमएफ़ हुसैन ने हाल में बनाए अपने एक चित्र में 'भारत माता' को बिना वस्त्र चित्रित करने के लिए माफ़ी माँगी है.

इस चित्र को बुधवार को एक चित्रकला प्रदर्शनी में दिखाया जाना और फिर नीलाम किया जाना था लेकिन अब इसकी नीलामी नहीं होगी.

इस चित्र को लेकर हिंदूवादी संगठनों ने आपत्ति जताई थी और लोगों की भावनाएँ आहत करने के आरोप में हुसैन के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है.

मुंबई पुलिस ने कहा है कि वह मामले की जाँच कर रही है.

हिंदू जनजागृति समिति और विश्व हिंदू परिषद के प्रदर्शनों के बाद, हुसैन ने मुंबई में कहा कि वे जनता से माफ़ी माँगते हैं.

दिल्ली की जिस आर्ट गैलरी यानि चित्रशाला में इस चित्र की नीलामी होनी थी, उसकी निरीक्षक शरन अप्पाराव का कहना था कि इस विषय पर उन्हें कई फ़ोन आए हैं.

उनका कहना था कि उन्हें ज़्यादतर महाराष्ट्र से फ़ोन आए हैं और कई लोगों ने गालियाँ तक दी हैं और ये स्वीकार्य नहीं है.

इससे पहले भी हुसैन सरस्वती के चित्र को लेकर विवाद में पड़ चुके हैं और इसे लेकर हिंदू संगठनों ने बड़ा विरोध किया था.

जिस चित्र को लेकर अब विवाद हो रहा है उसे चित्रकार एमएफ़ हुसैन ने हाल ही में बनाया है.

भूकंप पीड़ितों के लिए

मुंबई में 'मिशन कश्मीर' के नाम से एक चित्रकला प्रदर्शनी आयोजित की गई थी. इसमें प्रदर्शित चित्रों की नीलामी से होने वाली आय को कश्मीर के भूकंप पीड़ितों को भेजा जाना था.

इसी प्रदर्शनी के लिए हुसैन ने यह चित्र बनाया था.

इस चित्र में हुसैन ने तिरंगे में लगने वाले अशोक चक्र के सामने खड़ी एक महिला का चित्र बनाया है.

इस चित्र में महिला को निर्वस्त्र दिखाया गया है और उसके शरीर पर कई राज्यों के नाम लिखे हुए हैं.

इस चित्र का विरोध कर रहे संगठनों का कहना था कि ये 'भारत माता' का चित्र है और जिस तरह से इसे बनाया गया है वह भारतीयों और हिंदुओं की भावनाओं का अपमान है

2.उम्रक़ैद ने बना दिया कलाकार

बी.बी. सी. से साभार -

प्रदीप राभा का बनाया हुआ एक चित्र
प्रदीप राभा के एक चित्र को राष्ट्रीय स्तर पर दूसरा स्थान मिला है.
पिछले 12 वर्षों से क़त्ल के अपराध में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे प्रदीप राभा ने चित्रकारी को अपने जीवन का नया दोस्त बना लिया है.

पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम की राजधानी गुवाहाटी के केंद्रीय कारागार में 35 वर्षीय प्रदीप रोजाना दो-तीन घंटे अपनी कला प्रतिभा को संवारने में लगाते हैं.

उनके शिक्षक हरिप्रसाद तालुकदार का कहना है कि शुरुआत में इन्हें पेंसिल पकड़ना भी नहीं आता था लेकिन अपनी इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने इतनी उन्नति की कि पिछले वर्ष अखिल भारतीय स्तर की एक प्रतियोगिता में प्रदीप की कलाकृति को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ.

गुवाहाटी से क़रीब 80 किलोमीटर दूर बोको के पास भेगुआ गांव के निवासी प्रदीप को अपने पड़ोसी प्रजेन की हत्या के मामले में 20 वर्ष की क़ैद की सज़ा दी गई है.

हालांकि उसका कहना है कि हत्या उसने नहीं बल्कि उसके बड़े भाई पूर्ण ने की थी. प्रदीप के भाई को भी उम्रक़ैद की सज़ा हुई है.

क़ैद की सज़ा होने के बाद कारागार में प्रदीप के पास उनके करने लायक कोई ख़ास काम नहीं था.

शुरुआत

धीरे-धीरे प्रदीप ने लकड़ी का काम सीखा और जेल में लकड़ी के कारीगर के लायक जितने भी काम होते थे, वो उन्हें करने लगे.

जिस दिन तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ने इन कक्षाओं को शुरू करवाया था, वह दिन मेरे जीवन में भी बहुत अहमियत रखता है
हरिप्रसाद तालुकदार, कला शिक्षक

वर्ष 2000 में जब तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक शिव काकती जेल में भारत के प्रख्यात कलाकार ननी बरपुजारी को लेकर आए और यहाँ कला की कक्षाएँ शुरू करवाईं तब मात्र नौंवी कक्षा तक पढ़े प्रदीप का मन भी रंग और कूची से खेलने के लिए मचलने लगा.

प्रदीप ने भी कक्षा में अपना नाम लिखा लिया. तब से वो लगातार अपने अन्य चार-पांच साथियों के साथ कैनवास पर हाथ आजमाते हैं.

गुवाहाटी केंद्रीय कारागार में दैनिक रूप से कला की कक्षा लगती है.

शिक्षक हरिप्रसाद तालुकदार बताते हैं, "जिस दिन तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ने इन कक्षाओं को शुरू करवाया था, वह दिन मेरे जीवन में भी बहुत अहमियत रखता है."

तालुकदार बिना एक क्षण रुके बताते हैं कि उस दिन 12 फ़रवरी की तारीख थी.

कारागार में कला की शिक्षा का अनुभव उनके लिए रोमांचकारी रहा है. उनका कहना है कि जेल में उनके छात्र कला के लिए ज़्यादा समय दे पाते हैं इसलिए उनकी छिपी प्रतिभा को बाहर निकालने में ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पडती.

क्रांतिकारी क़दम

तालुकदार का मानना है कि जेल में कला की शिक्षा शुरू करना एक क्रांतिकारी क़दम था. यह अवसादग्रस्त कैदियों के लिए एक इलाज की तरह काम करता है.

प्रदीप राभा
प्रदीप उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे हैं.

जेल में प्रदीप राभा कला के अकेले छात्र नहीं हैं. उन्हीं के साथी दुलाल राभा पेड़ों के चित्र बनाते है.

कारागार में रहते हुए विभिन्न पेड़ देखने का उन्हें मौका तो नहीं मिलता लेकिन गाँव से आए दुलाल अपने वर्षों पहले देखे हुए पेड़ों की छवि को फिर से तुलिका के माध्यम से कैनवास पर उतारने का प्रयास कर रहे हैं.

हरिप्रसाद का कहना है कि विभिन्न ग़ैर-सरकारी संस्थाएँ जेल में चित्रकारी की कक्षाओं के लिए ज़रूरी सामान मुहैया करा जाती हैं.

इधर प्रदीप अपने अच्छे चाल-चलन के कारण अन्य क़ैदियों और कारागार अधिकारियों में काफी लोकप्रिय हो गए हैं.

कला ने इस गुस्सैल युवक को बदल कर रख दिया है. नियमों के तहत जेल अधिकारियों ने उन्हें अब हर वर्ष अपनी माँ, दीदी और छोटे भाई से मुलाक़ात करने के लिए एक महीने तक अपने गांव जाने की इजाज़त दे रखी है.

1.कला के क्षेत्र में बढ़ते भारतीय

बी.बी. सी. से साभार
आर्ट रिव्यू पत्रिका
पिछले छह साल से कला की दुनिया के प्रभावशाली लोगों की सूची निकाली जा रही है
आधुनिक कला की जानी मानी पत्रिका आर्ट रिव्यू ने कला की दुनिया के सौ प्रभावशाली लोगों की सूची में पहली बार तीन भारतीय नागरिकों को शामिल किया है.

ऐसा पहली बार हुआ है जब आर्ट रिव्यू ने प्रभावशाली लोगों की सूची में किसी भी भारतीय को शामिल किया हो. इस बार इस सूची में कलाकार सुबोध गुप्ता, ओसियान नीलामी घर के प्रमुख नेविल तुली और आर्ट कलेक्टर अनुपम पोद्दार शामिल हैं.

हालांकि इन सभी को सूची में काफी पीछे रखा गया है लेकिन इसके बावजूद विशेषज्ञ कहते हैं कि ये कला के क्षेत्र में भारत के बढ़ते महत्व को दर्शाता है.

सुबोध गुप्ता मूलत पेंटिग्स और इन्सटॉलेशन्स बनाते हैं और उनकी कृतियां दुनिया भर में लाखों रुपए में बिकती हैं. उन्हें इस सूची में 85वां स्थान दिया गया है.

भारत में कला का बाज़ार 1500 करोड़ रुपए से अधिक का है.

लंदन की पत्रिका आर्ट रिव्यू पिछले छह साल से प्रभावशाली लोगों की सूची निकालती है. यह सूची निजी आर्ट कलेक्शन, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यक्ति विशेष के प्रभाव और बाज़ार में किसी के काम के मूल्यांकन जैसे मानदंडों पर अपनी सूची में किसी को भी स्थान देती है.

भारत के नेविल तुली को सूची में 99वां और अनुपम पोद्दार को 100वां स्थान मिला है.

तुली मुंबई में ओसियान नीलामीघर के प्रमुख हैं और मार्डन आर्ट को भारत में लोकप्रिय बनाने में उनका खासा योगदान माना जाता है.

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय कला बाज़ार में पेंटिगों और अन्य कृतियों की कीमतों में भारी उछाल आया है. इतना ही नहीं विदेशों में भारतीय कलाकारों के कृतियों की कई प्रदर्शनियां भी लगी हैं.

हालांकि इसके बावजूद विशेषज्ञ कहते हैं कि इस सूची को बनाने वालों ने उन कलाकारों पर अधिक ध्यान दिया जिनके संबंध में अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने कवरेज की है.

सूची के तीनों ही भारतीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सक्रिय रहे हैं और सूची में शामिल होने का यह एक बड़ा कारण बताया जाता है.