बुधवार, 7 अप्रैल 2010

विश्वाश घात












डॉ.लाल रत्नाकर


विश्वाश घात के
भंवरजाल में
फंसते जाते
हंस हंस कर हम
घुसने से पहले तक जो थे,
शातिर अपराधी
भंवरजाल में घुस जाने पर
लगने लगे
वही सन्यासी
अब उनके आचरण
बताते जैसे
वो थे पहले के सन्यासी
नाहक वे तब पीट रहे थे
अपनी अपनी छाती|
विश्वासघात के भंवरजाल को
समझा एक झमेला
साजिश का घर था
मुझे क्या पता था
जुटा हुआ है यहाँ अज़ब
क़िस्म का मेला
जो बनता था
नेता ,(इंसानियत का पुतला)
वही रचा था
हर आहत का
घेरा
भंवर जाल में
घुस जाने पर
मिला वहां सब
जिन सब की निंदा करते थे
उन्हें बनाया चेला |