पिछले 12 वर्षों से क़त्ल के अपराध में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे प्रदीप राभा ने चित्रकारी को अपने जीवन का नया दोस्त बना लिया है. पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम की राजधानी गुवाहाटी के केंद्रीय कारागार में 35 वर्षीय प्रदीप रोजाना दो-तीन घंटे अपनी कला प्रतिभा को संवारने में लगाते हैं. उनके शिक्षक हरिप्रसाद तालुकदार का कहना है कि शुरुआत में इन्हें पेंसिल पकड़ना भी नहीं आता था लेकिन अपनी इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने इतनी उन्नति की कि पिछले वर्ष अखिल भारतीय स्तर की एक प्रतियोगिता में प्रदीप की कलाकृति को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ. गुवाहाटी से क़रीब 80 किलोमीटर दूर बोको के पास भेगुआ गांव के निवासी प्रदीप को अपने पड़ोसी प्रजेन की हत्या के मामले में 20 वर्ष की क़ैद की सज़ा दी गई है. हालांकि उसका कहना है कि हत्या उसने नहीं बल्कि उसके बड़े भाई पूर्ण ने की थी. प्रदीप के भाई को भी उम्रक़ैद की सज़ा हुई है. क़ैद की सज़ा होने के बाद कारागार में प्रदीप के पास उनके करने लायक कोई ख़ास काम नहीं था. शुरुआत धीरे-धीरे प्रदीप ने लकड़ी का काम सीखा और जेल में लकड़ी के कारीगर के लायक जितने भी काम होते थे, वो उन्हें करने लगे.
वर्ष 2000 में जब तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक शिव काकती जेल में भारत के प्रख्यात कलाकार ननी बरपुजारी को लेकर आए और यहाँ कला की कक्षाएँ शुरू करवाईं तब मात्र नौंवी कक्षा तक पढ़े प्रदीप का मन भी रंग और कूची से खेलने के लिए मचलने लगा. प्रदीप ने भी कक्षा में अपना नाम लिखा लिया. तब से वो लगातार अपने अन्य चार-पांच साथियों के साथ कैनवास पर हाथ आजमाते हैं. गुवाहाटी केंद्रीय कारागार में दैनिक रूप से कला की कक्षा लगती है. शिक्षक हरिप्रसाद तालुकदार बताते हैं, "जिस दिन तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ने इन कक्षाओं को शुरू करवाया था, वह दिन मेरे जीवन में भी बहुत अहमियत रखता है." तालुकदार बिना एक क्षण रुके बताते हैं कि उस दिन 12 फ़रवरी की तारीख थी. कारागार में कला की शिक्षा का अनुभव उनके लिए रोमांचकारी रहा है. उनका कहना है कि जेल में उनके छात्र कला के लिए ज़्यादा समय दे पाते हैं इसलिए उनकी छिपी प्रतिभा को बाहर निकालने में ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पडती. क्रांतिकारी क़दम तालुकदार का मानना है कि जेल में कला की शिक्षा शुरू करना एक क्रांतिकारी क़दम था. यह अवसादग्रस्त कैदियों के लिए एक इलाज की तरह काम करता है.
जेल में प्रदीप राभा कला के अकेले छात्र नहीं हैं. उन्हीं के साथी दुलाल राभा पेड़ों के चित्र बनाते है. कारागार में रहते हुए विभिन्न पेड़ देखने का उन्हें मौका तो नहीं मिलता लेकिन गाँव से आए दुलाल अपने वर्षों पहले देखे हुए पेड़ों की छवि को फिर से तुलिका के माध्यम से कैनवास पर उतारने का प्रयास कर रहे हैं. हरिप्रसाद का कहना है कि विभिन्न ग़ैर-सरकारी संस्थाएँ जेल में चित्रकारी की कक्षाओं के लिए ज़रूरी सामान मुहैया करा जाती हैं. इधर प्रदीप अपने अच्छे चाल-चलन के कारण अन्य क़ैदियों और कारागार अधिकारियों में काफी लोकप्रिय हो गए हैं. कला ने इस गुस्सैल युवक को बदल कर रख दिया है. नियमों के तहत जेल अधिकारियों ने उन्हें अब हर वर्ष अपनी माँ, दीदी और छोटे भाई से मुलाक़ात करने के लिए एक महीने तक अपने गांव जाने की इजाज़त दे रखी है. |
बुधवार, 4 अगस्त 2010
2.उम्रक़ैद ने बना दिया कलाकार
बी.बी. सी. से साभार -
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