शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012
सोमवार, 16 अप्रैल 2012
शायरी मैंने ईजाद की
फ़राज़ अहमद
कागज़ मराकशियों ने ईजाद किया
हुरुफ़ फ़ोनोशियों ने
शायरी मैंने ईजाद की
कब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर कब्जा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वालों ने कतार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा
रोटी की कतार में जब चीटियाँ आकर खड़ी हो गईं
तो फ़ाका ईजाद हुआ
शहतूत बेचने वालों ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिबास बनाए
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया
मगर उस वक़्त तक शायरी ईजाद हो चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने खेमा और कश्तियाँ बनाईं
और दूर दराज तक मकामात तय किए
ख़्वाजासरा ने मछली पकड़ने का कांटा ईजाद किया
और सोए हुए दिल में चुभो कर भाग गया
दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद की
और
ज़बर ने आख़िरी बोली ईजाद की
मैंने शायरी बेचकर आग ख़रीदी
और ज़बर का हाथ जला दिया.
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मराकिशी – मोरक्को के मिराकिश शहर के वासी
फ़ोनिशी – फ़ोनिश शहर के निवासी
महलसरा – अंत:पुर, हरम
खेमा – तंबू
ख़्वाजासरा – हरम का रखवाला हिजड़ा
ज़बर – अत्याचार.
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