नेता जी के नाम खुला पत्र
आदरणीय नेता जी
'१९९२ के बाद आपसे मुखातिब हूँ इस बीच परछाई की तरह आपकी तस्वीर और राजनीत की शक्ल लिए चलता और लड़ता रहा हूँ सोचा था एक यैसे ईमानदार और इज्जतदार शख्स के पीछे खड़ा हूँ जहाँ से 'देश की शक्ल' बदल देने की हिम्मत , ताकत और जज्बा दिखाई दे रहा था'
"मुलायम सिंह जी मान जाओ जिनके दिल यह कहने को तैयार बैठे है की सपा में सुधार हो जायेगा अमर सिंह के जाने से.अमर को अगर फिर मनाया तो वह निराश होंगे |"
अमर सिंह आपको लगता है की नेता है पर येसा नहीं है आपके पास आने से पहले अमर सिंह को कौन जानता था उनकी हैशियत 'मुलायम की वजह से बनी है' पर आपके समझ में यह क्यों नहीं आता की आपकी राजनैतिक दुर्दशा अमर सिंह की वजह से हुई है "सितारे और पूंजीपति तो मड्राते ही उसी पर या वही है जहाँ संभावनाएं होती है " जयाप्रदा , जया बच्चन या न जाने कितनी सिने तारिकाओं से काबिल सक्षम महिलाएं पिछड़ों और मुसलमानों तथा दलितों के परिवारों में तब भी थी और आज भी है "जिनके आरक्षण के लिए आज आप लडाई कर रहे हो महिला आरक्षण में हिस्सेदारी के लिए" पर क्या उक्त प्रकार की नारी को - राज्य सभा , लोक सभा या अपनी सरकार में किसी काबिल पद पर आपने बैठाया , जरा सोचिये उन्ही के पतियों, पिताओ, भाईओं ने लड़ - लड़ कर आपको बुलंद किया था, पर उस सारी बुलंदी की मलाई अमर की मंडली चट कर गयी , अब देखना ये है की उस मंडली के लोग कहाँ जाते है . एक बात और है नेता जी "सदियाँ लग जाती है किसी आन्दोलन को खड़ा करने में पर पल भर की बेरुखी ध्वस्त कर देती है क्या आपको याद है इसी अमर के चलते कितने यादवों को आपने दण्डित किया था, यदि कहें तो सूचि संलग्न कर दूँ पर उनका नाम लिखना भी ना इंसाफी ही होगी, निठारी से लेकर आपकी चारदीवारी तक के लोंगों ने अमर की वजह से कोसा था आपको "राजनीति में कोई आये कोई जाये पर इमान और इज्जत से राजनीति में रहना आपसे सिखा था फूलन को भी आप पर ही भरोसा था - पर इस अमर ने इज्जत और इमान का सौदा ही नहीं इतने घटिया तरीके से बेचा है, वैसे तो कोई बेसहारा माँ भी अपने औलाद को न बेचती इन्हें क्या पता "कितनों के पिताओं ने अपने बच्चों के होम वर्क भी नहीं देखे होंगे और पागलों के तरह पार्टी के लिए जान तक दे दिये, दलालों की सूचि में नाम आ जाये इसलिए अमर के चक्कर काटने और कटाने वालों को हमने भी देखा है . "लोहिया के कितने यैसे चेले थे .
अतः नेताजी वक्त आ गया है अमर सिंह के सपा से चले जाने का आप विश्वाश करो अभी इनको जाने दो,यह फिर लौट कर आपके पास ही आयेंगे जब आप की शक्ति लौट आएगी 'वह समझदार है आपको यैसे ही नहीं छोड़ के जा रहे है वह जानते है अब उनका काम ख़तम हो गया है हिसाब किताब यैसे लोग नहीं करते है देते भी खूब है लेते भी खूब है |
सादर |
(- चित्रकला जैसे कम लोकप्रिय विषय में पढाई करने के उपरांत जब कला कुल स्वर्गीय राय कृष्णदास के सुझाये "पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोक कला" पर प्रोफ.आनंद कृष्ण के निर्देशकत्व में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से शोध किया था. इस कम के लिए जब मै पूर्वी उत्तर प्रदेश का सर्वे किया था और उस समय जो 'सामाजिक सरोकार - सामाजिक भेदभाव नज़र आया था' लगा था यह शायद राजनीति से दूर हो जायेगा उसी जज्बे के साथ राजनीति के करीब आया था १९९१ का गड्वारा, जौनपुर से विधान सभा का चुनाव समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) से पर जल्दी ही मोह भंग हो गया था, पर आज इसलिए यह लिख रहा हूँ की एक डरपोक से ताकतवर कैसे डरता है -?)
-डॉ.लाल रत्नाकर
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